निरुपमा सिंह
जिंदगी के सफर में यह कैसा मुकाम आया ...
सिर्फ आराम ही आराम है पर जज्बा परेशानी की है .....
लॉक डाउन में कैद हैं ,पर उम्मीद कायम है ....
कभी कभी नाराज हो जाती हूं
इन पाबंदियों से
तो जीना चढ़ ऊपर छत पे पहुंच जाती हूं
आंखों में समुंद्र की हिल कोरे लिए नभ की ओर ताकती हूं....
बादलों में कभी भेड़ तो कभी शेर और कभी चेहरे और आकार को तलाशती हूं
तभी चिड़ियों की चहचहाहट और उनकी उड़ान से मन तृप्त हो जाता है ...
और कभी उन्मुक्त पवन मुझे स्पर्श करते हुए अपने आगोश में ले लेता ...
मन आनंदित और प्रफुल्लित हो जाता..…
विशाल और विनम्र यह नीला आसमान
मुझसे कहता है सब्र करो सब कुछ अपने समय पर सही होगा....
सब्र करो ,सांझ के बाद सवेरा होगा......
. सब्र करो ,इस तूफानी रात (2020.. कोविड-19)के बाद
सतरंगी इंद्रधनुष (2021)का नजारा होगा.....
तुम होगे ,तुम्हारे अपने होंगे और सारा जहां होगा.....
बस, थोड़ा सब्र करो ।
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11 comments:
Wow ma'am ...👌👏
Wow ma'am this was amazing especially the last lines were of great motivation🌸
Very Positive
Well said....Corona has given us food for thought.We have to be positive and hopeful for moving forward in life.
Very positive and inspiring....the year will end on a good note.
Inspiring!!
Aap ki mehfil me mazaa aa gaya. Thanks for inviting.
बहुत खूब।
कुछ भी ना सही उम्मीद ही सही।
सवेरा हो और जल्द हो।
अब जीना भी उबाऊ हो चुका।
नई रचना आइयेगा- समानता
सुन्दर सृजन
AWESOME..AS EVER
Beautiful lines!!! Congratulations Ma'am.
I am truly touched!!!
Thank you.
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